बदलता आर्थिक चक्र

आर्थिक चक्र में बदलाव की भविष्यवाणी करना हमेशा जोखिम भरा होता है। यहां तक कि अपनी भविष्यवाणियों के बारे में मंझे हुए अर्थशास्त्री भी गलत साबित हुए हैं। किसी विशेष भूकंपीय क्षेत्र में भूकंप की भविष्यवाणी करने की तुलना में इस तरह का अभ्यास करना मुश्किल है। हालांकि आर्थिक आंकड़ों के आधार पर इसका आकलन जरूर किया जा सकता है कि वैश्विक मंदी का खतरा कितना प्रमाणिक है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था संकट के दायरे से पूरी तरह बाहर नहीं आ पाई है।
इसी दरम्यान अमेरिका के एसएंडपी 500 में उच्चतम स्तर से आई भारी गिरावट ने वैश्विक मंदी आने की आशंकाओं को बढ़ा दिया है। यह गिरावट सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है बल्कि आंकड़े बताते हैं कि चीन की विकास दर में भी गिरावट आ सकती है। जापान और यूरोप में भी आर्थिक सुस्ती के लक्षण दिख रहे हैं। यूरो जोन में जर्मनी की स्थिति ज्यादा नाजुक है। शोध एजेंसी एनबीईआर के अनुसार अमेरिका में सबसे लंबे समय तक व्यापार चक्र का विस्तार मार्च 1991 से मार्च 2001 तक एक दशक चला। इसके बाद जून 2009 में शुरू हुआ वर्तमान विस्तार दूसरी सबसे लंबी अवधि का है। लेकिन यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह व्यापार चक्र आखिर कितने समय तक चलेगा ?
यदि विश्व की दो शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक आंकड़ों पर गौर करें तो यह खतरे की घंटी की ओर इशारा कर रहे हैं। यद्यपि कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट इसकी आपूर्ति में जोरदार वृद्धि को दर्शा रही है लेकिन इसकी मांग में कमी को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने वर्ष 2019 में तेल की मांग 14 लाख बैरल प्रतिदिन की वृद्धि का अनुमान लगाया है। पहले यह अनुमान 13 लाख बैरल प्रतिदिन का था। अमेरिका का विनिर्माण सूचकांक अप्रैल में 56.5 की तुलना में नवम्बर में 53.9 पर फिसल गया जो देश की आर्थिक विकास दर में गिरावट का संकेत देता है।
इसके लिए अमेरिकी सरकार की नीतियां दोषी हैं। इनमें चीन के साथ व्यापार युद्ध आर्थिक वृद्धि के लिए घातक साबित हो सकता है। यदि यह युद्ध तेज होता है तो इससे चीन की अर्थव्यवस्था में और गिरावट आएगी जिसका विशेषकर एशियाई देशों पर भी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इस संकट से उबरने के लिए चीन प्रतिस्पर्धी रुख अपना सकता है। इस स्थिति में चीन अमेरिकी कोषागार की अपनी हिस्सेदारी बेचकर जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व वर्ष 2009 से वित्तीय प्रणाली में तरलता यानी पूंजी की मौजूदगी को बढ़ा रहा है। फेड का मानना है कि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती आई है। इसके तहत वह अपने कोष में 50 अरब डालर प्रतिमाह तरलता को जमा कर रहा है। हाल ही में फेड रिजर्व ने कहा है कि वह इस प्रक्रिया को आगे भी जारी रखेगा। अर्थव्यवस्था में सुधार का यह उपाय नीतिगत ब्याज दरों में सख्ती के अलावा है। दरअसल, अमेरिकी बांड की यील्ड में बड़ी गिरावट आर्थिक सुस्ती का संकेत दे रही है लेकिन अभी 10 साल के बांड की यील्ड दो साल की तुलना में 13.5 बेसिस प्वाइंट ज्यादा है।
पिछली दो मंदियों के दौरान स्थिति को काबू करने के लिए नीतिगत दरों में सख्ती की गई थी। वर्तमान में अमेरिकी ब्याज दरें तटस्थ दर के निचले स्तर पर हैं। वित्तीय तरलता के प्रणाली से बाहर जाने और अन्य बुनियादी कारकों के बिगड़ने से आर्थिक स्थिति खराब होने की आशंकाएं बढ़ रही हैं। यहां सीबीओई वीआईएक्स यानी ‘भय सूचकांक’ 28 तक बढ़ गया है। भारत में यह सूचकांक पिछले कुछ महीनों में दोगुना हो गया है। वर्ष 2018 की शुरुआत की तुलना में इसमें लगभग 300 फीसद की वृद्धि हुई है।
उधर यूरो जोन की चिंताओं की बात करें तो यहां जर्मनी की स्थिति ज्यादा नाजुक है। तीसरी तिमाही में इसकी आर्थिक वृद्धि 1.1 फीसद रही है। इसका सेवा एवं विनिर्माण क्षेत्र का कंपोजिट पीएमआई चार साल के निचले स्तर पर आ गया है। यदि जापान की बात करें तो यहां के केंद्रीय बैंक ने देश की अर्थव्यवस्था के जोखिम पर प्रकाश डालते हुए वित्तीय तरलता बढ़ाने के संकेत दिए हैं। हाल ही के एक सर्वे में जापान की अर्थव्यवस्था में लगातार कमजोरी के संकेत मिल रहे हैं। पिछली तिमाही में जापान की आर्थिक वृद्धि दर ऋणात्मक 0.6 फीसद रही है। बैंक ऑफ जापान ने साफ संकेत दिए हैं कि बैंकों की ब्याज दरों में कटौती, परिसंपत्तियों की खरीद में वृद्धि और मुद्रा प्रवाह में तेजी लाने की जरूरत है

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