मजदूर दर्द से मजबूर।

जिसने लहू दिया इस धरा को,
वो आज क्यों मजबूर है।
उसके भाग्य में किसने लिखा,
क्यों दर-दर भटकने को मजबूर है।।
जिसने बनाये ये लंबे रास्ते,
वो उन रास्तों ही चलने को मजबूर है।।
मर गयी संवेदना सबकी,मर गयी सरकारें सारी।
जो करते थे उनके हक़ की बातें।
वो नेता सब कहाँ गये।।
अपनी ही लाश को ढोता,
लहूलुहान चलता जाता,
न जाने वक्त को क्या मंजूर है।।

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