भारतीये बाजार और कॉरपोरेट गवर्नेंस।
भारतीये बाज़ार में सबसे बड़ी समस्या कॉरपोरेट गवर्नेंस की है। कुछ कंपनियों को अगर अलग कर दिया जाय तो लगभग 80% कंपनियों में इस समस्या को महसूस किया जा सकता है।
कंपनियों में गड़बड़ी का आकलन करने वाली रेटिंग ऐजेंसी भी पूरी तरह से इन कंपनियों के आकलन में चूक जाती है,या ये जानबूझकर कर करती है। इसका जीता जागता सबूत IL&FS के दिवालियापन को देख सकते है।
पर इसको रोकने का क्या उपाय किया जाना चाहिये जिससे इस तरह के प्रोब्लम को रोका जा सके।
सरकार और रेगुलेट करने वाली संस्थाओं का इसमें बड़ा रोल हो सकता है। जो कंपनियों को लेंड करने वाले बैंक है उनका भी रोल इसमें जबरदस्त है। आखिर एक बड़ा पैसा लैंड करने वाले बैंकों का डूबता है।
बैंक अगर जागरूक होते तो NPA का जो कैंसर आज फैल चुका है और एक के बाद एक कंपनियों को NCLT में जाना पड़ रहा है,इसका सबसे बड़ा कारण बैंकों ने कर्ज देकर अपने कर्ज की उचित देखभाल नहीं कि और कुछ लोगों ने या तो जानबूझ कर या परिस्थितियों के कारण बैंकों का पैसा डूबा दिया।
इस तरह के प्रमोटरों को चिन्हित कर उनसे वसूली और दुबारा किसी भी कंपनी में कोई स्थान न मिले इसे सुनिस्चित करना चाहिये।
देश मे अब IBC के आने के बाद NPA बनता है तो इसकी जिम्मेदारी बैंकों और बैंक प्रबंधन पर होनी चाहिये।
कंपनियों को ऑडिट करने वाले फॉर्म को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करना जरूरी है,और जो फॉर्म सही से ऑडिट नहीं करती या कंपनियों से मिलीभगत कर गोलमाल करती है उनको ब्लैकलिस्ट कर उनको बाज़ार से बाहर करना चाहिये।
वो कौन से बैंकर थे जिन्होंने एक लोन को चुकाने के लिये दूसरा लोन दिया और उनको NPA हो जाने दिया गया। कंपनियों को उनके परफॉर्मेंस के आधार पर लोन न देकर राजनीतिक साठ-गांठ कर लोन दिया गया । और इन लोन की रिकवर करने के कोई उपाय नहीं किये गए। और लोगों को भाग जाने के मौके दिए गए।
नीरव मोदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उसने बैंक से कोई कैश पैसा नहीं लिया था ,उसने सिस्टम में से बैंक ट्रांसक्शन कर पैसा लिया और बैंक के ऑडिट रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख नहीं मिला। जबकि देश से बाहर जाने वाले पैसे पर RBI और ED दोनों नजऱ रखते है। और उस समय रघुराम राजन गवर्नर थे।
ये कैसा सिस्टम है जिसको 3 या 4 लोग मिलकर कर उसे लूट सकते है। अगर बैंक में या बैंकों के बीच लेन देन हो और दूसरा बैंक पहले से उस पैसे की डिमांड नहीं करे ये सब भूल नहीं इसे मिलीभगत कह सकते है क्योंकि बिना मिलीभगत इस तरह का कांड सम्भव ही नहीं हो सकता है।
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