मार्केट कैप, या मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है।

मार्केट कैप, या मार्केट कैपिटलाइजेशन, किसी कंपनी के कुल मूल्य का माप है जो उसके शेयरों के मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर होती है। इसे निकालने के लिए कंपनी के कुल बकाया शेयरों की संख्या को शेयर के वर्तमान बाजार मूल्य से गुणा किया जाता है।

मार्केट कैप की कैटेगरीज:

1. लार्ज-कैप (Large Cap): बड़ी कंपनियाँ, जैसे Nifty 50 की कंपनियाँ, जिनकी मार्केट कैप बहुत अधिक होती है। ये कंपनियाँ स्थिर और सुरक्षित मानी जाती हैं।


2. मिड-कैप (Mid Cap): मध्यम आकार की कंपनियाँ जो लार्ज-कैप कंपनियों से छोटी होती हैं, लेकिन विकास की अच्छी संभावनाएँ होती हैं।


3. स्मॉल-कैप (Small Cap): छोटी कंपनियाँ, जिनमें जोखिम अधिक होता है लेकिन उच्च रिटर्न की संभावना भी होती है।



मार्केट कैप से हमें किसी कंपनी की स्थिरता और बाजार में उसके स्थान का अंदाजा मिलता है, और इसका उपयोग पोर्टफोलियो को विविधित करने में भी किया जाता है।
मार्केट कैप का मापदंड कंपनी के कुल शेयरों की संख्या और उनके वर्तमान बाजार मूल्य पर आधारित होता है। इसे निम्नलिखित फॉर्मूले से निकाला जाता है:

मार्केट कैप = कंपनी के कुल शेयरों की संख्या × प्रति शेयर का वर्तमान बाजार मूल्य

मार्केट कैप के आधार पर कंपनियों को विभिन्न कैटेगरीज में बांटा जाता है:

1. लार्ज-कैप (Large Cap): मार्केट कैप ₹20,000 करोड़ से अधिक। ये स्थिर और अपेक्षाकृत सुरक्षित निवेश मानी जाती हैं।


2. मिड-कैप (Mid Cap): मार्केट कैप ₹5,000 करोड़ से ₹20,000 करोड़ के बीच। इनमें ग्रोथ की संभावना होती है लेकिन जोखिम भी थोड़ा अधिक होता है।


3. स्मॉल-कैप (Small Cap): मार्केट कैप ₹5,000 करोड़ से कम। ये कंपनियाँ ज्यादा जोखिम भरी होती हैं लेकिन रिटर्न देने की संभावना भी अधिक होती है।



नोट: मार्केट कैप बदलता रहता है क्योंकि ये शेयरों की कीमत पर निर्भर करता है, जो बाजार की स्थितियों के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है।


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